badge पुरानीबस्ती : #व्यंग्य - कुछ नया लिखो
चाँद भी कंबल ओढ़े निकला था,सितारे ठिठुर रहें थे,सर्दी बढ़ रही थी,ठंड से बचने के लिए, मुझे भी कुछ रिश्ते जलाने पड़े।

Sunday, August 16, 2015

#व्यंग्य - कुछ नया लिखो





जब से चेतन भाई ने पुरानी बस्ती के व्यंग्यों को पढ़ना शुरु किया तब से व्यंग्य लिखने का मानसिक दबाव बढ़ सा गया है। चेतन भाई पहले ही पुरानी बस्ती के लोगो और थीम की डिज़ाइन बनाने में अपना काफी दिमाग लगा चुके हैं और यदि व्यंग्य उन्हें कमजोर लगता है तो उसके लिए मुझे मेहनत तो करनी पड़ेगी।



पिछले बुधवार को जब चेतन भाई मिले तो उन्होंने कहा कि कटप्पा वाला व्यंग्य बहुत कमजोर था, अब तुम्हारे व्यंग्य दमदार होने चाहिए। कुछ नया लिखो! 
"कुछ नया लिखना है?"

कुछ नया लिखने का सफर बहुत ही कठिन है। क्या नया लिखोगे? रामायण हो चुकी है, महाभारत हो चुकी है। परसाई जी लिख चुके हैं, शुक्ला जी लिख चुके हैं। सामाजिक मुद्दे तो आज भी नही बदले हैं तो नया व्यंग्य किस पर लिखें। 

लेकिन चेतन भाई को कुछ नया दमदार पढ़ना है। तो नया क्या लिखें? सोच रहा हूँ महाभारत उल्टा लिख दू। इसबार चीरहरण पांडव करेंगे लेकिन फिर याद आया कि दुर्योधन की धर्मपत्नी का नाम तो कभी नही पढ़ा तो चीरहरण किसका होगा। धृतराष्ट्र को नेत्र देने की बात पर लगा कि फिर तो महाभारत संभव नहीं लगती क्योंकि पांडवों का अधिकार तो इसलिए ही सत्ता पर था क्योंकि धृतराष्ट्र नेत्रहीन थे।

रामायण पर कुछ लिखा जा सकता है। लेकिन उसमें स्वयं श्रीराम को विष्णु का अवतार बने हैं इसलिए उसपर कटाक्ष करने से लोग आहत हो जाएंगे और मर्यादा पुरषोत्तम राम के नाम पर मुझे इतनी गालियाँ देंगे कि मेरी सात पुस्ते मुझे व्यंग्य लिखने के लिए धिक्कारेंगी। 

कटाक्ष लिखना, लोगों को हसते हुए उनकी गलतियां बताना इतना आसान नही है। कभी कोई व्यंग्य पानी पीते पीते सूझ जाता है और कई बार लाख दिमाग लगा लो कुछ नही सुझता और ऊपर से सोमवार को व्यंग्य पोस्ट करने की सनक। कुछ ना सूझे तो भी दिमाग पर जोर डालकर सुझवाओ। और फिर चेतन भाई कहेंगे कुछ नया लिखो।

चलो नया लिखते हैं एक समय की बात है (हो चुका है)
एक जंगल में बहुत सारे जानवर रहते थे (हो चुका है)
उस जंगल को धृतराष्ट्र ने पांडवों को अपना शहर इंद्रप्रस्थ बसाने के लिए सौप दिया (हो चुका है)
अर्जुन ने अग्निबाण चलाकर उस जंगल में आग लगा दी ताकि उनके महल के लिए जगह बन सकें।(हो चुका है)

जंगल में आग लगी भागों रे भागों (हो चुका है)

"शेर सभी जानवरों को जंगल से भगाने में मदद कर रहा था (ये कुछ नया है) शेर ने अपने जानपर खेलकर बहुत से जानवरों को आग से बाहर निकलने में मदद की, सभी को लगा शेर बदल गया है और दयावान बन चुका है। लेकिन शेर होशियार था उसे पता था कि यदि सब जानवर आग में जल गए तो वो राज किसपर करेगा। दूसरे जंगल में जाकर राज करना आसान ना होगा। जानवरों को डराना इतना भी आसान नही है और ऊपर से रोज शिकार के लिए जद्दोजहद करनी पड़े वो अलग। शेर सभी जानवरों  को बचाकर एक नए जंगल में ले गया जहां कोई प्राणी वास नहीं करते थे और फिर उसने अपना असली चेहरा दिखाते हुए उन्हें डराना और मारकर खाना शुरू कर दिया।"





कहानी नई है और इसी के साथ हम आपका भारत के लोकतंत्र में स्वागत करते हैं। अब इस शेर और भारत के लोकतंत्र से कैसे जोड़ना है आप सोचो। नया पढ़ना है तो थोड़ा दिमाग लगाओ। अच्छे व्यंग्य में बहुत सी बाते लिखी नहीं जाती वो पाठक की सोच पर छोड़ दी जाती है। अब आप पर निर्भर करता है आप स्वंय को क्या समझते हैं, यदि समझ आ गया तो टिप्पणी करना मत भूलना और यदि नहीं समझा तो कौन सा आपने पैसा दिया है जो नुकसान हो जायेगा। 





अगले सोमवार को एक नए व्यंग्य के साथ मिलेंगे और गुरुवार को #ब्वॅाय_फ्रॅाम_बॅाम्बे - 1 (ड्रामा)  पढ़ने आ सकते हो. जहाँ बॉम्बे से मुंबई की कहानी और झुग्गी से बड़ी - बड़ी बिल्डिंगों की कहानी का एक पहलू होगा । 


2 comments:

  1. हरेन्द्र शर्माAugust 16, 2015 at 10:53 PM

    चेतन जैसों की पसन्द का बड़ा खयाल करते हो।

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  2. हरेन्द्र शर्माAugust 16, 2015 at 10:56 PM

    सुन्दर है चेतन खुश हो जाएगा अगर पढ़ सका तो।

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