कबीर जेल से तो बच गया था लेकिन उसकी माँ की मौत ने उसे अंदर से कमजोर कर दिया था। बब्बी ने कबीर को खुश करने के लिए हर कोशिश की परंतु उसका कोई लाभ नही हुआ। कबीर का मानना था कि माँ उसके जेल जाने के सदमे को नही सह सकी इसलिए उसने आत्महत्या कर लिया। कबीर सत्य से अनभिज्ञ था और शायद ये सत्य चंदा कुमारी और नामदेव के अलावा किसी को नही पता था।
धीरे - धीरे समय के साथ कबीर पुनः साधारण बरताव करने लगा। यदि चंदा कुमारी की मौत ना हुई होती तो शायद अब तक बब्बी और कबीर के घर एक बच्चा भी पैदा हो जाता जिसे चंदा कुमारी दिनभर अपनी गोद में लेकर खिलाते रहती।
चंदा कुमारी के अंतिम संस्कार में नामदेव भी आया था और उसने कबीर को उसके पार्टी के साथ काम करने के लिए कहा। बब्बी नामदेव के इस परोपकार को भली भाँति जानती थी और उसने कबीर के सामने इस बात का विरोध भी किया लेकिन कबीर को अब अमीर आदमी बनना था। राजनैतिक सीढ़ी ऊपर बढ़ने के लिए सबसे आसान तरीका है इसलिए अकसर चोर,डाकू और लफंगे आगे चलकर राजनीति में शरण लेते हैं। नामदेव भी किसी जमाने में एक टपोरी ही था।
कबीर ने नामदेव के साथ काम करना शुरू कर दिया। पहले शुरुआत में तो वो समय पर घर आ जाता था लेकिन धीरे धीरे उसने देरी से आना शुरु कर दिया। एक दिन वो रातभर घर नही आया और बब्बी ने पूरी रात जागकार बिता दी। अगले दिन जब कबीर घर आया तो दोनों में बहुत झगड़ा हुआ। कबीर ने शराब पी रखी थी। शराब के नशे और गुस्से में उसने बब्बी के ऊपर हाथ उठा दिया।
इस घटना के बाद तीन दिन तक कबीर घर से बाहर नही निकला। बब्बी अपने सलुन जाती और शाम को घर आ जाती। उसका मानना था कि अब कबीर को नामदेव के लिए काम करना छोड़ देना चाहिए और उन दोनों को माँ कि अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए शादी कर लेना चाहिए। कबीर शादी करने को तैयार था लेकिन काम छोड़ने के लिए नही तैयार हो रहा था।
कुछ दिनों के बाद सब कुछ सामान्य हो गया और कबीर फिर से काम पर जाने लगा । कुछ दिन तक तो वो समय पर घर आया लेकिन फिर समय बिताने के साथ फिर से देरी से आना शुरू कर दिया। बब्बी ने एक दिन कबीर से कहा कि वो पेट से हैं और अपने बच्चे के भविष्य के लिए कबीर को नामदेव के साथ काम छोड़ना होगा। कबीर भी अब इस बात के लिए तैयार हो गया था।
अगले दिन जब कबीर नामदेव के पास उसे काम के लिए मना करने पहुंचा तो नामदेव ने उसे एक नए घर की चाबी दी। घर बोरीवली की एक बिल्डिंग में था और कबीर के लिए अशोकवन की स्लम से निकलकर वहाँ जाना उसके सपने जैसा था। कबीर ने चाबी हाथ में ले लिया और वहाँ से काम पर चला गया।
इस कहानी में कुल १२ भाग है और हर गुरुवार को हम नए भाग के साथ मिलेंगे . आप इस कहानी पे हमें अपनी टिपण्णी जरूर लिखें.
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