badge पुरानीबस्ती : मोबाईल का जन्म
चाँद भी कंबल ओढ़े निकला था,सितारे ठिठुर रहें थे,सर्दी बढ़ रही थी,ठंड से बचने के लिए, मुझे भी कुछ रिश्ते जलाने पड़े।

Sunday, September 27, 2015

मोबाईल का जन्म




कंश तेरे पाप का घड़ा अब भर चुका है और देवकी का आठवा पुत्र तेरी हत्या करेगा​​। प्राचीन काल मे आकाशवाणी कुछ ​इस ​तरह होती थी। आकाशवाणी सिर्फ एक बार ही होती है आप ने ​ए ​जुमला अपने दोस्तों के बीच कई बार सुना होगा । आकाशवाणी देवी-देवताओं की जुबान थी जो समय-समय पर मानव जाति के कल्याण के लिए हुआ करती थी। ऋषि-मुनि कई वर्षों की तपस्या करके एक दूसरे से संपर्क साधने की सिद्धि प्राप्त करते थे। धीरे-धीरे कलयुग आ गया । यहाँ ना अब वो साधु संत थे और ना देवताओं की आकाशवाणी। भगवान के पास भी मानवजाति से संपर्क करने के लिए कोई साधन नही था। ​भगवान भी मानव जाति से बात करना चाहते थे। ​


भगवान को अचानक एक दिन विचार आया कि क्यों ना धरतीवासियो को भी आकाशवाणी की कला सीखा दी जाए। भगवान को ए बात पता थी कि कलयुग ​का ​इंसान बहुत ही कामचोर है तो आकाशवाणी की सिद्धि प्राप्त करने के लिए इंसान इतनी मेहनत नही करेगा। भगवान ने देवताओं के बीच मानव जाति को मुफ्त आकाशवाणी की सिद्धि देने की बात की। भगवान का प्रपोसल लोकसभा से पास हो गया परंतु विधानसभा मे उनके पास समर्थको की कमी थी। एक बहुत ही सीनियर साधुबाबा ने भगवान के समर्थन का विरोध किया। साधुबाबा का मानना था कि जिस सिद्धि को पा​ने के लिए उन्होंने कई साल तपस्या की उसे मानवजाति को मुफ्त मे देने  ​से सभी तपास्या करने वाले लोगों पर अन्याय होगा।




विधानसभा के सदस्यों ने मिलकर एक कमेटी बनाई और उन्हें तीस दिन के अंदर इस समस्या का हल ढूंढकर एक रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा। कमेटी ने धरती की तरफ रुख किया और जांच पड़ताल मे लग गई । धरतीवासियो का एक दुसरे से संवाद करने का तरीका बहुत ही पुराना था।देवलोक मे तो आजकल नारद मुनि के अलावा भी कई लोगों के पास क्षणभर मे एक जगह से दूसरी जगह जाने की सिद्धि आ गई थी और मानव अभी भी कागज के पत्रो पर लिखकर संदेश यहां से वहां भेजता था। धीरे धीरे तीस दिन पुरे हो गए परंतु कमेटी की रिपोर्ट तैयार नही थी उन्होंने एक हप्ते का और समय मांगा​​। ​कमेटी के सदस्य रिपोर्ट देने की जल्दी में नहीं लग रहे थे। रिपोर्ट सौंपते ही उन्हें मिली सभी सुख सुविधाओं उनसे ले ली जाती इसलिए वो रिपोर्ट को आगे ठेलते जा रहे थे। ​



​आखिर कार कमेटी ने रिपोर्ट सौंप दी और उसमे साफ साफ कह दिया गया की मानव जाति अब सिर्फ ​ऐश और आराम की जिंदगी चाहती है, तो वो आकाशवाणी के लिए तपस्या नहीं करनेवाले है। अंत में राज्यसभा ने निश्चय लिया की वो मानवजाति को आकशवाणी देंगे परन्तु उन्हें उसे मोबाईल नमक यन्त्र का इस्तेमाल करके इस्तेमाल करना होगा और इस तरह मानवजाति को मोबाईल मिल गया। कुछ इसी तरह हमारे यहाँ कई सरकारी योजनाएँ बनती है जिसके लिए हम मेहनत नहीं करना चाहते और नेता जी अपने हिसाब से अपने लाभ के लिए योजनाये बनाते है और उसका इस्तेमाल करते है। सुना है की अब मोबाईल के इस्तेमाल से शरीर को हानि भी होती है परन्तु अभी तक ये सत्य नहीं हो पाया और दूसरी तरफ नेताजी की सरकारी योजनाओ से हमारे देश को बहुत हानि हो रही है और ए तो हम देख सकते है। 



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4 comments:

  1. बहुत खूब भाई , जिस सादगी से आपने देवताओं और मनुष्यों को एक यन्त्र के माध्यम से जोड़ा है वो वाकई काबिलेतारीफ है। यकीन मानिए ऐसा लग रहा था मानो मैं व्यंग्य नहीं बल्कि प्रेमचंद्र जी की कोई कहानी पढ़ रहा हूँ। ऐसे ही रहा तो वो दिन दूर नहीं जब लोग "व्यंग्य" की जगह "पुरानी बस्ती" शब्द का इस्तेमाल करने लगेंगे।

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    1. लोल :-) धन्यवाद - इस टिप्पणी के बाद सोच रहा हूँ लिखना बंद कर दू

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