badge पुरानीबस्ती : #व्यंग्य - बाभनो का आराक्षण
चाँद भी कंबल ओढ़े निकला था,सितारे ठिठुर रहें थे,सर्दी बढ़ रही थी,ठंड से बचने के लिए, मुझे भी कुछ रिश्ते जलाने पड़े।

Sunday, September 6, 2015

#व्यंग्य - बाभनो का आराक्षण





भारत एक विशाल देश है जहाँ राम के युग से ही हर सामाजिक खेल सत्ता आधिपत्य पाने के लिए हुआ। चाहे वो दुर्योधन का अपने चचेरे भाईयो से युद्ध हो या फिर बरतानिया सरकार का भारत में कॅालोनी बनना। अंग्रेजों ने कम से कम भारत को जाते जाते एक सरहद बनाकर दे दी। उसके पहले तो भारत राज्य हजार वर्ग किलोमीटर से घटता बढ़ता रहा था। उन्होंने पाकिस्तान बनाकर सीमा तय कर दी। 



अंग्रेज चले गए लेकिन सत्ता भारतीयों के हाथ में सौंप गए। जहाँ हर भारतीय नेता पैदा होता है। हमने तो यहाँ तक सुन रखा है कि उत्तर भारत का हर बच्चा माँ के पेट से राजनीति सीखकर आता है और शायद उत्तर भारत के पिछड़ेपन का एक कारण यही राजनीति की अति है और आज के समय में भी उत्तर भारत सबसे अधिक जातिगत विसंगतियो में बटा हैं।

आरक्षण पहले पिछड़ी जातियों को एक सुचारु जीवन के निर्वाह के लिए दिया गया जो हिंदू वर्ण व्यवस्था के मारे थे लेकिन धीरे-धीरे पिछड़ी जातियों के लोगों ने उसे अपना अधिकार मान लिया है और हमारी जातिगत राजनीति के चलते उसमें कोई अमूलचूल परिवर्तन फिलहाल तो संभव नही दिखता है। उल्टा हर अल्पसंख्यक रोज अपनी जाति के लिए आरक्षण की मांग कर रहा है।

जब जब आरक्षण के लिए कोई तबका आवाज उठाता है तो कुछ लोग उसके खिलाफ भी खड़े हो  जाते हैं। आरक्षण की खिलाफत करनेवालों में बाभन (ब्रह्माण) भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं क्योंकि पिछड़ी  जातियों को मिले इतने सालों के आरक्षण के बाद कई जगहों पर बाभन बेहाल जिंदगी जी रहे हैं और चमार धनवान हो गए हैं। बाभन आरक्षण के विरोध में आवाज तो उठाते हैं लेकिन स्वयं के आरक्षण पर सवाल नही उठाना चाहते।

बाभनो का स्वंय का आरक्षण?

एक दिन ट्विटर पर एक चाचा टाइप के जनाब एक बंदे से पूछ रहे थे कि भाई आप तीन में हो या तेरह में हो? तीन और तेरह से उनका मतलब गोत्र से था। पांडे, मिश्रा, तिवारी, उपाध्याय इत्यादि उपनाम में बटा ब्रह्माण समाज, और शुद्ध होने के लिए हर उपनाम को उसके गोत्र में विभाजित करता है। 

आप सोच रहे होंगे तो इसमें आरक्षण कैसा? आरक्षण तो है सिर्फ लोगों ने देखना मुनासिब नही समझा। जो ब्रह्माण तीन में आते हैं वो अपने आपको सभी ब्रह्माणो से ऊँचा समझते हैं। बाकी के सभी ब्रह्माण अपने घर की लड़कियो की शादी उनके यहाँ करते हैं लेकिन "तीन" में आनेवाले ब्रह्माण अपनी लड़कियो की शादी तेरह में आने वाले ब्रह्माणो के यहाँ नही करते हैं। 

विवाह में आरक्षण लेने के बाद अगला कदम है दहेज में आरक्षण। जो तो सरासर गलत है, दहेज पर तो सबका हक है! लेकिन तीन वाले का बच्चा बारह फेल हो तो भी उसको दहेज में मोटर बाइक और तेरह वाले बीए पास करके शादी होने का इंतजार कर रहें हैं। ऊपर से पूजा पाठ में अपने तीन की अकड़ दिखाकर बेचारे तेरह वालों की दक्षिणा भी लूट ले रहें हैं।

अब उनके जातिगत आरक्षण पे विधवा विलाप को फिर से देखिए और साथ में उनका दोगलापन। हर कोई अपने आरक्षण को नही छोड़ना चाहता है लेकिन किसी और को आरक्षण मिले इस बात का विरोध करता है।





अगले सोमवार को एक नए व्यंग्य के साथ मिलेंगे और गुरुवार को #ब्वॅाय_फ्रॅाम_बॅाम्बे - (ड्रामा)  पढ़ने आ सकते हो. जहाँ बॉम्बे से मुंबई की कहानी और झुग्गी से बड़ी - बड़ी बिल्डिंगों की कहानी का एक पहलू होगा ।





इस लेख पर अपने विचार हमें जरूर लिखें। 



धन्यवाद 




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