badge पुरानीबस्ती : #कविता - चलो नज्में भरकर कलाईयाँ बजाएँ
चाँद भी कंबल ओढ़े निकला था,सितारे ठिठुर रहें थे,सर्दी बढ़ रही थी,ठंड से बचने के लिए, मुझे भी कुछ रिश्ते जलाने पड़े।

Wednesday, December 30, 2015

#कविता - चलो नज्में भरकर कलाईयाँ बजाएँ





चलो नज्में पहनकर कलाईयाँ बजाएँ,

संभलकर देखना कुछ गिर ना जाएँ,

पिछली बार जो टूटी मिली नहीं थी,



पिछली बार जो पहनी थी,

पुरानी हो गई सारी,

कुछ चटकर टूट गई कब की,



कुछ हरी थी, कुछ लाल रंगों की,

कलाई को दबाती,

कुछ शोर हर छड़ मचाती,



सजोकर कुछ फीकी नज्में,

रख दिया शिंगार दानी में,

जब नहीं होते वो तो उनकी याद होती हैं,



दर्द होता है सुनकर

के सुहाग लुटने पर,

ये नज्में भी दम तोड़ देती हैं,




अभी तो लेकिन हसीन पल हैं,

चलो नज्में पहनकर कलाईयाँ बजाएँI








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4 comments:

  1. मार्मिक गुरु ! जियो !

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  2. चलो नज्में पहनकर कलाईयाँ बजाएँ,
    एक तस्वीर सी खिंच गयी आँखों के सामने :))

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