badge पुरानीबस्ती : #कविता - कुछ रिश्ते जलाने पड़े
चाँद भी कंबल ओढ़े निकला था,सितारे ठिठुर रहें थे,सर्दी बढ़ रही थी,ठंड से बचने के लिए, मुझे भी कुछ रिश्ते जलाने पड़े।

Wednesday, December 23, 2015

#कविता - कुछ रिश्ते जलाने पड़े




चाँद भी कंबल ओढ़े निकला था,

सितारे ठिठुर रहें थे,
सर्दी बढ़ रही थी,
ठंड से बचने के लिए,
मुझे भी कुछ रिश्ते जलाने पड़े।

कुछ रिश्ते
जो बस नाम के बचे थे,
खींच रहा था
मैं उनको
कभी वो मुझे खींचा करते थे।
सर्दी बढ़ रही थी,
ठंड से बचने के लिए,
मुझे भी कुछ रिश्ते जलाने पड़े।


कुछ रिश्ते
बहुत कमजोर हो चले थे,
उनकी लपट भी बहुत कम थी,
कुछ इतने पतले
की जलने से पहले राख हो गए।
सर्दी बढ़ रही थी,
ठंड से बचने के लिए,
मुझे भी कुछ रिश्ते जलाने पड़े।


कुछ पुराने रिश्ते थे,
मेरे जनम के पहले के,
सजोया था उन्हें मैंने,
उन्हें नही था कोई लगाव मुझसे।
सर्दी बढ़ रही थी,
ठंड से बचने के लिए,
मुझे भी कुछ रिश्ते जलाने पड़े।












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15 comments:

  1. कुछ रिश्ते
    बहुत कमजोर हो चले थे,
    उनकी लपट भी बहुत कम थी,
    कुछ इतने पतले
    की जलने से पहले राख हो गए।

    वाह खूब कही

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  2. बहोत बढ़िया भई 👍

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  3. अच्छी....पर कुछ रिश्ते जलाने पड़े पंक्ति का दोहराव नहीं होता तो एक छोटी नज़्म के तौर पर उत्कृष्ट हो जाती

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    1. हो सकता है, आप उन पंक्त्तियों को हटाकर पढ़ ले

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  4. Padhey! Achhi hai. (Bas thodi si Gulzar saab ki chhaap hai varna bahut achhi kahte.)

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    1. धन्यवाद, गुलज़ार साहब प्रेरणा स्रोत हैं तो उनकी छाप होना लाजमी है।

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  5. बहुत बढ़िया।

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  6. बहुत खूबसूरत अहसास समेटे ये पोस्ट लाजवाब है |

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