badge पुरानीबस्ती : #कविता - समय को अटका दिया
चाँद भी कंबल ओढ़े निकला था,सितारे ठिठुर रहें थे,सर्दी बढ़ रही थी,ठंड से बचने के लिए, मुझे भी कुछ रिश्ते जलाने पड़े।

Wednesday, January 13, 2016

#कविता - समय को अटका दिया




कलाई की घड़ी को,

आज बड़े प्यार से उतारा,
और उसकी कुंजी को 
खींचकर 
एक असफल प्रयास किया,
घड़ी को रोकने का।

फिर भी जब ना मानी घड़ी,
तो,
चटकाकर उसका कांच,
कुछ घावों से,
उसकी एक सूई को तोड़ दिया,
घड़ी भी जिद्दी किस्म की है,
रुकने का नाम नही है लेती।

कितना मुश्किल है,
वक्त को पकड़कर रखना,
या बांधना उसे किसी वाकिये के साथ,
कुछ बिगड़ेगा क्या उसका,
यदि वो कुछ देर ठहर जायेगा तो।

आखिर में एक सूई को,
पकड़कर मोड़ दिया,
कुछ इस तरह की,
अटक जाये वो वक्त वही,
मैं उन लम्हों को महसूस करता रहूँ।

वो लम्हा जहाँ मैं कुछ भी नही,
लेकिन गम भी नही,
मेरे कुछ ना होने का,
अब अटाकर समय को,
मैं मौज मनाऊँगा।






आपकी टिप्पणी हमारे लिए भारतरत्न से भी बढ़कर है इसलिए आपकी टिप्पणी कमेंट बॉक्स में लिखना न भूलें। 



हर सोमवार/गुरुवार  हम आपसे एक नया व्यंग्य/कविता लेकर मिलेंगे।  ​


6 comments:

  1. बहुत ही लाजवाब, कमल भाई मैंने कभी सपने मे भी नही सोचा था कि घड़ी पर भी ऐसी दिल को झकझोर देने वाली कविता लिखी जा सकती है। बेहद उम्दा।

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद शुभांश, ये टिप्पणी पढ़कर लग रहा है की बस अब लिखना छोड़ दूँ :)

      Delete
  2. वाह कमल भाई, अफवाहों और व्यंग से हटकर ये रूप एकदम अनोखा है. बेहतरीन...

    ReplyDelete
  3. आखिर में एक सूई को,
    पकड़कर मोड़ दिया,
    कुछ इस तरह की,
    अटक जाये वो वक्त वही,
    बेहद खूबसूरत भाव्…………दिल मे उतर गयी रचना जनाब :))

    ReplyDelete

Tricks and Tips