लिखने से पहले एक बात बता देना चाहता हूँ की यहाँ जिस महात्मा गांधी का जिक्र हो रहा है उनका हमारे अर्थात भारत के राष्ट्रपिता स्वर्गीय मोहनदास कर्मचन्द गांधी से कोई लेना देना नहीं है। ये गांधी मेरे मन की उपज है और मुझे ये बताते हुए कोई दुःख नहीं है की इस तरह का व्यंग्य लिख कर मैं अपने मानसिक रोगी होने का सबुत दे रहा हूँ। यदि आपको यह लेख किसी भी तरह से गलत लगे या आपकी भावना को आहत करे तो कृपया मुझे मानसिक रोग से ग्रस्त होने के कारण माफ़ी दे दे।
प्यारे कश्मीरी पंडित,
तो तुम सब कश्मीर छोड़ क्यों नहीं देते? यदि मुस्लिम भाइयों की जिद है की तुम्हारे जाने से उनका चैनो अमन लौट आएगा तो तुम अपने अल्पसंख्यक भाइयों की लिए इतनी छोटी से कुर्बानी नहीं दे सकते हो? मैंने तो पहले भी कहा है की तुम सब हिन्दू हो और ऊपर से पंडित ! पंडितो ने कई सदियों से लोगो को दबाकर रखा, पिछड़ों को मंदिर में जाना बंद कर रखा था। उन्हें तालाब और कूंवो से पानी नही लेने देते थे। उन्हें अछूत कहते थे तो इस सब का हरजाना कभी तो चुकाना होगा और जिस तरह पिता की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति बेटे की हो जाती है उसी तरह तुम्हारे पुरखों द्वारा किया गया अत्याचार का फल तुम्हे चुकाना होगा।
बेचारे कश्मीरी मुस्लिम सिर्फ इतना चाहते हैं की या तो तुम भी अल्ल्हा हूँ अख़बार बोलो या कश्मीर छोड़ दो। देखो कितने नेक दिल कितने प्यार से धर्म परिवर्तन के लिए कह रहें हैं और आगे चलकर हिंदू पंडित के मरने से अधिक दुखदायी मच्छर का मरना होगा। तुम्हारा वजूद भविष्य में खाक होना ही है तो अभी खाक क्यों नहीं कर देते। आगे बढ़कर इस्लाम कबूल करो या कश्मीर छोड़ दो, तुम्हे कुर्बानी का दूसरा अवसर फिर नहीं मिलेगा। अपने अहिंसक कश्मीरी मुसलिम भाईयों को हिंसा करने के लिए मत उकसाओ। इतिहास गवाह है की बाबर से लेकर औरंगजेब तक मुस्लिम शासकों ने हिंसा का जो नंगा नाचा दिखाया है उससे तुम्हारे बाप दादा की रूह स्वर्ग में भी कांप जाती है।
मुझे उम्मीद है की मेरे पत्र से आप लोगों को ये समझ गए होगे की कश्मीर छोड़कर जाना ही तुम्हारे हित में है। वैसे भी तुम हिन्दू हो और ऊपर से पंडित तो तुम्हे कोई भी मानवाधिकार के नाम पर फरियाद करने का मौैका नहीं देगा। चलते चलते इतना कहना चाहता हूँ "कायदे में रहोगे तो फायदे में रहोगे " और ये मेरा कश्मीर और मैं यहाँ का जयकांत शिकरे खान हूँ।
आपका प्यारा,
महात्मा गांधी (लेखक के बीमार मानसिक सोच का नतीजा)
कश्मीरी पंडितो ने महात्मा गांधी के पत्र से सीख नहीं ली और १९९० में उन्हें प्यारे, अहिंसक मुस्लिम कश्मीरी भाइयों ने या कत्ले आम कर दिया या तो उन्हें कश्मीर छोड़कर अपने ही देश में दर बदर फिरने को मजबूर कर दिया। गांधी दूरदर्शी थे इसलिए मैं हमेशा उनका सम्मान करता हूँ। बोलो महात्मा गांधी जिंदाबाद जिंदाबाद !!
(उपरोक्त व्यंग्य पहले केशव और पार्थ के प्रारूप में लिखा जाना था परंतु आप लोगो की भावनाओं को देखकर मैंने प्रारूप ही बदल दिया जिससे ये व्यंग्य एक अनाथ बच्चे की तरह लग रहा है।)
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अद्भुत और अलौकिक _/\_
ReplyDeleteबस शुभांश, अब तो सिर्फ आपकी टिप्पणी के लिए ही लिखता हूँ :)
Deleteऐसा कहकर मुझे शर्मिंदा न करें बन्धु, आपके बेहतरीन व्यंग्य किसी टिप्पणी के मोहताज नहीं। पर इन्हें पढ़कर ख़ुद को टिप्पणी देने से रोक नहीं पाता।
ReplyDelete_/\_
Deleteचिंता न करें एक और परशुराम आएंगे और सब ठीक हो जाएगा
ReplyDeleteदेखतें हैं
Deleteचिंता न करें एक और परशुराम आएंगे और सब ठीक ।
ReplyDeleteबेनामी जी इस बार परशुराम का कुठार भी भोथरा जायेगा क्योकि इस बार मुकाबला धर्मपालक क्षत्रियों से नही बल्कि विधर्मी .........से है जो नीति निष्ठा और नमन में विश्वास नही करतें है।
ReplyDeleteकलयुग है तो परशुराम भी कलयुगी होंगे।
Deleteशानदार और सटीक। और जहाँ तक परशुराम या कल्कि का सवाल तो वो तो हम सबके अंदर है, बशर्ते हम असुरो के गुरु शुकचार्य के प्रभाव से स्वयं को मुक्त करे।
ReplyDeleteसही कहा आपने
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