badge पुरानीबस्ती : #कविता - सितारे जागते रात भर
चाँद भी कंबल ओढ़े निकला था,सितारे ठिठुर रहें थे,सर्दी बढ़ रही थी,ठंड से बचने के लिए, मुझे भी कुछ रिश्ते जलाने पड़े।

Wednesday, January 6, 2016

#कविता - सितारे जागते रात भर




सितारों की ऐसी क्या मजबूरी होती है,

जो उन्हें रात भर जागना पड़ता है,
चाँद को देखो मन का राजा,
कला बदलता रहता है,
कभी कभी कुछ घंटों के लिए निकलता है,
और अमावस को तो पूरी छुट्टी कर लेता है।

सितारों की ऐसी क्या मजबूरी होती है,
जो उन्हें रात भर जागना पड़ता है,
लेकिन मिटाते है अंधियारा तिमिर का,
रात को जो शायर सो नही पाते,
सितारे ही तो उनका मन बहलाते हैं।

सितारों की ऐसी क्या मजबूरी होती है,
जो उन्हें रात भर जागना पड़ता है,
कुछ सितारों ने तो गिनती भी हमको सिखलाई,
उन्हें ही गिनने के लिए तो शून्य का निर्माण हुआ,
और बना दिए आंकड़े अरब-खरब तक हमने।

सितारों की ऐसी क्या मजबूरी होती है,
जो उन्हें रात भर जागना पड़ता है,
उनका रात को दिखना भी जरूरी है,
नही तो ग्रह नक्षत्रों को कैसे गिनते,
कैसे जानते भविष्य हमारा।

सितारों की ऐसी क्या मजबूरी होती है,
जो उन्हें रात भर जागना पड़ता है।















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