वॅाल्टर को मेरे घर पर आकर दो दिन हो गए थे। मैं रोज दिनभर भटककर शाम तक वॅाल्टर के लिए कही ना कही से मांस लेकर आता था। वॅाल्टर सारा का सारा मांस चटकर जाता था उसे लगता रहा होगा कि मैं शाकाहारी कुत्ता हूँ। इसलिए उसने कभी भी मुझे मेरे ही लाये मांस के लिए आमंत्रित नही किया और मेरा गरीब सेवा धर्म कभी भी उससे चुराकर मांस खाने के लिए तैयार नही होता था।
वॅाल्टर के बात करने का लहजा मुझे हमेशा से पसंद था। वो तो भौंकता भी ऐसे था मानो जैसे अंग्रेजी एक्सेंट में कोई दक्षिण मुंबई का व्यक्ति अपने नौकर पर भौंक रहा हो, अरे माफ करिए मेरा मतलब था बोल रहा हो। वैसे दक्षिण मुंबई के लोगों का नौकरों से बात करना भौंकने जैसा ही होता है।
वॅाल्टर ने मुझे पिट्ज्जा बोलना सिखाया वरना मैं तो पहले पिज्जा पिज्जा बोलकर खुश रहता था उसने मुझे बताया की थोड़ा सा ट् भी बोलना। उसने कहा एक चौथाई से अधिक ट् बोलने पर पिट्ज्जा का अपमान हो जाता है। एक वो दिन था और एक आज का दिन है मैंने कभी पिट्ज्जा को पिज्जा नही कहा। उसके चलते मैंने वाइन पीना भी सीख लिया। वाइन का एक छोटा घूंट लेकर उसे जीभ से हलके से पूरे मुहँ घुमाओ और फिर धीरे से गटक जाओ। वॅाल्टर की यही तो अदा मुझे पसंद थी, वाइन पीने के लिए भी इतना सारा सूत्र लगा देता था।
एक दिन एंटिला का एक दूसरा कुत्ता वॅाल्टर की खोज में हमारे यहाँ तक आ पहुँचा। वॅाल्टर उनके साथ खुशी खुशी चला गया। मेरे लिए भी उस गाड़ी में बहुत जगह थी लेकिन वॅाल्टर ने एक बार भी अपने मालिक से मुझे साथ ले चलने की बात नही कही। उसे इस बात की याद भी नही आई कि हर रात मैं सिर्फ इसलिए जागते रहता था कि कोई दूसरा सड़क छाप कुता वॅाल्टर को रात को काटकर ना भाग जाए। वॅाल्टर ने जाते जाते मुझे एक बार गले से भी नहीं लगाया। उसका व्यवहार कुछ ऐसा था की "गरीब कुत्ते तूने अपना कर्तव्य किया, ना कि मेरे ऊपर कोई उपकार।"
वॅाल्टर उस दिन चला गया।
वॅाल्टर के जाने के बाद मैं उसे बहुत याद करता था। उसके जाने के एक हफ्ते तक मैं अपनी गली के बाहर नहीं निकला। मुझे गली के कुत्ते चिढ़ाते थे क्या हुआ तेरा दोस्त छोड़कर चला गया और तुझे साथ भी नहीं ले गया। मैंने फिर से धीरे - धीरे सुचारू जिंदगी को अपना लिया और जीवन मजे में बिताने लगा।
कुछ सालों बाद मैं एक बड़े-बड़े कुत्तों की पार्टी में वेटर बनकर गया। एक्सक्युज मी कैन आय हैव पिट्ज्जा? मैंने पलटकर देखा तो वॅाल्टर मेरे सामने खड़ा था । मैं उसे गले लगाना चाहता था लेकिन वॅाल्टर के चेहरे से लगा की वो इस वक्त मुझे पहचानना नही चाहता है। वॅाल्टर के ऊपर इंसानो की परछाई पड़ गयी थी अब उसका व्यवहार इंसानो सा था वरना कुत्ते तो हमेशा से ईमानदार होने के लिए जाने जाते हैं। लेकिन वॅाल्टर बिलकुल ईमानदार नहीं था, ना अपने कर्तव्य के प्रति और ना ही प्रजाति के प्रति।
कुत्ते की जात तो कुत्ते की तरह ही व्यवहार करेगी। और मैंने दिल से वॅाल्टर को अगले जनम में असली कु्त्ता बनने का श्राप दिया। आजकल मेरे सिग्नल से एक बड़ी गाड़ी गुजरती है उसके मालिक का चेहरा वॅाल्टर की तरह ही लगता है।
#व्यंग्य - अमीर कुत्ता �� - 1
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