जब कभी तुम,
सिगरेट जलाने की
कोशिश करते थे,
मैं फूँक मारकर
बुझा देती थी,
कितनी बार कहा था
तुमसे,
ये जिंदगी
सिर्फ तुम्हारी नहीं है,
मेरी जो दिल है,
वो तुम्हारे सिगरेट के धुंए
से खराब हो रहा है,
ऐश ट्रे में बढ़ती राख
से जिंदगी मेरी
स्याह हुई जाती है।
बुझाया करो इन्हे,
जलाने से पहले,
एक कश जिंदगी का,
बुझी हुई सिगरेट से लगाना।
मैंने संजोकर रखी है,
कुछ पुराने डिब्बे सिगरेट के,
जिस पर हमने
जिंदगी का प्लान बनाया था,
वो सिगरेट ख़राब हो गई है,
लेकिन प्लान अभी भी
संजीदा लगता है।
अब ना जलाना सिगरेट,
अब मैं वहां नहीं हूँ,
जलती सिगरेट बुझाने को।
jisne kavita likhi hai, uska naam bhi likhna chahiye ki nahi?
ReplyDeleteहोना तो चाहिए
Deleteबहुत बढ़िया सर
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