badge पुरानीबस्ती : #कविता - वो रात फिर जीना है
चाँद भी कंबल ओढ़े निकला था,सितारे ठिठुर रहें थे,सर्दी बढ़ रही थी,ठंड से बचने के लिए, मुझे भी कुछ रिश्ते जलाने पड़े।

Tuesday, April 26, 2016

#कविता - वो रात फिर जीना है


वो कोटरों से किर किर की आवाज,



वो गुजरना पगडंडी पर से शाम के वक्त,
रात के अंधेरे में दरख्तो के साये से डरना,
बेना हौक कर हवा को चेहरे से मिलाना, 
वो मुंज-बांस से बनी खटिया पर सोना,
रात का वो सन्नाटा,
निरीह आँखों से तारों को तकना,
रात को सोते वक्त निमकोईय्या का हमपर गिरना,
बहुत कुछ है बताने को,
बहुत कुछ है जो याद आता है,
यहाँ तीन रुम के मकान में कैद हो गया हूँ,
कभी आजाद हुआ तो वो रात फिर जीना है।

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