वो कोटरों से किर किर की आवाज,
वो गुजरना पगडंडी पर से शाम के वक्त,
रात के अंधेरे में दरख्तो के साये से डरना,
बेना हौक कर हवा को चेहरे से मिलाना,
वो मुंज-बांस से बनी खटिया पर सोना,
रात का वो सन्नाटा,
निरीह आँखों से तारों को तकना,
रात को सोते वक्त निमकोईय्या का हमपर गिरना,
बहुत कुछ है बताने को,
बहुत कुछ है जो याद आता है,
यहाँ तीन रुम के मकान में कैद हो गया हूँ,
कभी आजाद हुआ तो वो रात फिर जीना है।
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