badge पुरानीबस्ती : #कविता - गमों को आंगन में बिखरे देखा
चाँद भी कंबल ओढ़े निकला था,सितारे ठिठुर रहें थे,सर्दी बढ़ रही थी,ठंड से बचने के लिए, मुझे भी कुछ रिश्ते जलाने पड़े।

Thursday, April 14, 2016

#कविता - गमों को आंगन में बिखरे देखा




बहुत दिनों बद जब पुराने घर पहुँचा,

तो कई गमों को आंगन में बिखरे देखा।

कहा रहते हो शायर?
एक छोटे गम ने पूछ लिया,
उससे मैं पहले नही मिला था,
जब बात बढ़ी तो पता चला,
उसके दादा के साथ 
मैंने कुछ वक्त बिताया है।

वो नन्हा गम बताने लगा कि,
दादा जी रोज तुम्हारी तारीफ करते थे,
कई साल बिताया था उसके दादा जी ने मेरे साथ,
बचपन से साइकिल चलाना चाहता था,
लेकिन शहर जाने तक कभी नही चला पाया

कुछ और गम भी बिखरे हैं,
एक गम तो आखरी सांसें गिन रहा है,
शायद वो मेरे गाँव न लौट पाने का गम है,
अब जो मैं लौट आया हूँ,
लगता नही वो कुछ और दिन जी पाएगा।

एक गम और है जो जन्म ले रहा है,
पनपने पर पता चलेगा 
वो क्या लेकर आया है,
जिंदगी से मौत का सफर,
ये गम ही आसान करतें हैं।

बहुत दिनों बद जब पुराने घर पहुँचा,
तो कई गमों को आंगन में बिखरे देखा।

4 comments:

  1. सच जाने कितनी ही यादों में डूब-उतर जाता हैं मन अपने पुराने घर द्वार देख .... चुपचाप देखते हैं वे हमें और हम उन्हें, ऐसे में शुन्य को ताकते रह जाते हैं, हाथ मलते रह जाते हैं ...

    बड़ी भावुक कर देने वाली हैं आपकी कवितायेँ
    बहुत अच्छी लगी ..

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  2. वक़्त के तेज गुजरते लम्हों में कई बार मन कहता है इसी तरह

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