badge पुरानीबस्ती : #कविता - कुछ पल अंधेरों का देते हैं
चाँद भी कंबल ओढ़े निकला था,सितारे ठिठुर रहें थे,सर्दी बढ़ रही थी,ठंड से बचने के लिए, मुझे भी कुछ रिश्ते जलाने पड़े।

Wednesday, July 27, 2016

#कविता - कुछ पल अंधेरों का देते हैं


उजाले तो हर कोई 

अजुरी भरखकर रख लेता है,
आओ मेरे साथ 
कुछ पल अंधेरों का देते हैं।

काली स्याही फेंककर 
कुछ उजली रातों को चमकाया है,
सितारों से कहा 
तुम कुछ देर के लिये टिमटिमाना बंद करो,

चाँद की छुट्टी तो पहले ही कर दी थी,
अभी देर है सूरज को निकलकर 
प्रकाश का कोलाहल करने में,

आओ मेरे साथ 
कुछ पल अंधेरों का देते हैं,

गिनकर तारे सर्द रातों में,


उँगलियाँ जो जल गई थी,
आज उन्हें मरहम
अंधेरे का लगा देते हैं।

कुछ खयालात हैं,
कुछ खयालात हैं,
जो अंधेरे के सर्द होने पर,
आकर बैठते हैं मेरे पास,
मुझसे गुफ्तगू करतें हैं।

आओ मेरे साथ 
कुछ पल अंधेरों का देते हैं,








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