नज्म एक लिखी,
कई बार मिटाई,
सारे अल्फ़ाज़ हैं परेशान,
पूछते हैं,
क्या लिखना चाहते हो शायर?
अब क्या बताऊँ उन्हें,
अपने मिश्रे सुलझा रहा हूँ,
लिखकर मिटाना नही आता मुझे,
मिटाकर अल्फ़ाजों के दाब बना रहा हूँ,
वो नज्म जो
उस रात सपने में आई थी,
अल्फ़ाज़ों से लबरेज थी
और लज्जत ऐसी जैसे पान में लगा किमाम।
खो गई है नज्म मेरी,
अल्फ़ाज़ों ने उसे घेर रखा है,
मैं तो इतना कहूँगा बस,
सुनो अल्फ़ाज़ों जो परेशान हो तो,
लौटा दो मुझे मेरी नज्म।
पहले पद्यांश के लिए...����
ReplyDeleteधन्यवाद
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