badge पुरानीबस्ती : #कविता - अल्फ़ाजों में खोई नज्म
चाँद भी कंबल ओढ़े निकला था,सितारे ठिठुर रहें थे,सर्दी बढ़ रही थी,ठंड से बचने के लिए, मुझे भी कुछ रिश्ते जलाने पड़े।

Monday, September 26, 2016

#कविता - अल्फ़ाजों में खोई नज्म


नज्म एक लिखी,
कई बार मिटाई,
सारे अल्फ़ाज़ हैं परेशान,
पूछते हैं,
क्या लिखना चाहते हो शायर?

अब क्या बताऊँ उन्हें,
अपने मिश्रे सुलझा रहा हूँ,
लिखकर मिटाना नही आता मुझे,
मिटाकर अल्फ़ाजों के दाब बना रहा हूँ,

वो नज्म जो 
उस रात सपने में आई थी,
अल्फ़ाज़ों से लबरेज थी
और लज्जत ऐसी जैसे पान में लगा किमाम।

खो गई है नज्म मेरी,
अल्फ़ाज़ों ने उसे घेर रखा है,
मैं तो इतना कहूँगा बस,
सुनो अल्फ़ाज़ों जो परेशान हो तो,
लौटा दो मुझे मेरी नज्म।









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