विमुद्रीकरण के बाद सारा देश पंक्ति में खड़ा हो गया। कुछ लोगों ने कहा कि जनता पैसे निकालने के लिए दंगा कर सकती है परंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ। हो भी नहीं सकता क्योंकि भारत एक पंक्ति प्रधान देश है। १९४७ में भारत गणराज्य का गठन हुआ तब से भारत का इतिहास भारत के नागरिकों द्वारा समय - समय पर की गई पंक्ति क्रांति से भरा हुआ है।
१९४७ के पहले हम स्वतंत्रता लेने के लिए पंक्ति में खड़े थे। स्वतंत्रता मिलने के बाद हम अपने ही देश में अपने अधिकारों को लेने के लिए पंक्ति में खड़े हो गए। हम से कुछ लोकतंत्र में लोकतंत्र पाने की पंक्ति में आज तक खड़े हैं। कुछ इस दुनियाँ से निकलकर दूसरी दुनियाँ में जाकर वहाँ की पंक्ति में लग गए।
मेरे दादा जी बताते थे कि उन्हें साईकिल खरीदने के लिए पंक्ति में खड़ा होना पड़ा था। मेरे पिताजी स्कूटर लेने के लिए पंक्ति में खड़े रहे थे। मेरे घर का पहला फोन और गैस कनेक्शन भी बुक करने के तीन साल बाद आया। गैस कनेक्शन आने के पहले हम मिट्टी का तेल (घासलेट) खरीदने के लिए पंक्ति में खड़े रहते थे और वो भी महीने में दो बार।
जिंदगी जब आगे बढ़ी तो स्कूल से कॉलेज की पंक्ति में खड़े हो गए। कॉलेज जाने के साथ बस की पंक्ति में भी खड़ा होना आरंभ कर दिया। मुंबई की लोकल सेवा में पंक्ति नहीं लगती, वहाँ तो मारा - मारी होती है अन्यथा वहाँ भी मैं खड़ा हो जाता। गाँव जाने के लिए टिकट आरक्षण कराने के लिए तो कई बार घण्टों पंक्ति में खड़ा रह चुका हूँ।
जन्म प्रमाण पत्र, आधार कार्ड, पासपोर्ट और ऐसी अन्य बातों के लिए पंक्ति में खड़ा होना तो बहुत सामान्य बात है। भारत के इतिहास को यदि मोहन जोदडों की सभ्यता से खंगाला जाए तो वहाँ भी हमें लोगों के पंक्ति में खड़ा होने के पुख्ता तथ्य मिल जायेंगे। भारत की इस पंक्ति क्रांति से इस बात का ज्ञान हो जाता है कि भारत के लोग पंक्ति में खड़े रहने को अपने जीवन का उतना ही जरुरी अंग समझते हैं जितना जीने के लिए साँस लेना जरुरी है।
भारत एक पंक्ति प्रधान देश है और हमारे नेता जब चाहें और जितने समय के लिए चाहें पंक्ति में खड़ा रख सकते हैं।
बढ़िया पोस्ट है पर टिप्पणी छपी की नहीं पता नहीं चल पायेगा :)
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Deleteदिखी :)
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