अपने नए काव्य की पृष्ठभूमि तलाश करते हुए कवि कालिदास सपनों के नगर मुंबई आये हुए थे। उन्होंने ने अपनी टाइम मशीन को नैशनल पार्क के जंगलों में छिपा दिया और फिर जंगल की रमणीय यात्रा पर निकल गए। जंगल में भटकते - भटकते वो एक टूटी हुई नैशनल पार्क की दीवार से मुंबई महानगर में पहुँच गए।
आषाढ़ को जिस हालत में कवि कालिदास ने देखा उसे देखकर उनका मन खिन्न हो गया। नदियों के सतत प्रवाह की जगह उनके सामने बहते हुए गटर का बदबूदार पानी था। पेड़ - पौधे के नाम पर उन्हें कुछ गरीब पेड़ दिखे जो पेटभर जमीन की मिट्टी पाने के लिए तड़प रहें थे।
महानगर में मनुष्यों की भीड़ देखकर कवि कालिदास ने मनुष्यों के ऊपर कोई भी कविता नहीं लिखने का निर्णय लिया। कालिदास घूमते - घूमते इतनी दूर निकल गए कि वापसी के लिए उन्हें कई टैक्सियों को हाथ दिखाना पड़ा लेकिन कोई भी टैक्सी उन्हें बैठाने के लिए तैयार नहीं हुई।
कवि कालिदास जैसे - तैसे करके नैशनल पार्क में पहुँचे तो उनकी टाइम मशीन वहां से लापता थी और तब से बेचारे कवि कालिदास मुंबई में भटक रहें हैं क्योंकि यदि वो पुनः अपने समय में लौट गए होते तो उन्होंने अषाढ़ मास के बारे में अपने विचार जरूर बदल दिए होते।
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