badge पुरानीबस्ती : मिठाई - एक लघुकथा
चाँद भी कंबल ओढ़े निकला था,सितारे ठिठुर रहें थे,सर्दी बढ़ रही थी,ठंड से बचने के लिए, मुझे भी कुछ रिश्ते जलाने पड़े।

Thursday, December 28, 2017

मिठाई - एक लघुकथा





मिठाई कहानी है एक ऐसे गांव की जहाँ आज भी वहां का जमींदार गरीबों का अपने लालच के लिए शोषण कर रहा है। ऐसे ही एक शोषित समाज से शालिक हरवाह आता है। जिसके पूरे परिवार को मिठाई खाकर कई साल बीत गए हैं और दिवाली पर उसका बेटा मिठाई खाने के जिद करता है। 





शालिक हरवाह अपने मालिक को अपने बेटे निनका की मिठाई खाने की जिद के बारे में बताता है और वहां से जमींदार साहब की नाराजगी आरंभ होती है जो जहर बनकर उस मिठाई में उतर जाती है जिसे शालिक हरवाह का परिवार खाता है।





मिठाई के इस जहर का असर शालिक हरवाह के परिवार के ऊपर तो होता ही है लेकिन जमींदार साहब का परिवार भी इससे बचा नहीं रहता है। इस मिठाई को किसने - किसने चखा यह जानने के लिए आपको यह लघुकथा पढ़नी होगी। 





इस फिल्म को नए जगत के कुछ युवा फिल्मकारों ने प्रेमचंद शैली की कहानी बताकर ख़ारिज कर दिया लेकिन मुझे तो यह कहानी की तारीफ लगती है। 






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