चारो तरफ त्राहि - त्राहि मची थी। मुफ्तखोरों को मुफ्त शराब पिलानेवाला दिवालिएपन की कगार पे खड़ा था। उसका संसद जाने का रास्ता लगभग बंद हो चुका था इसलिए जेल में जाना या फिर इंग्लैंड फरार हो जाना अंतिम रास्ता था। सभी मुफ्तखोरों को इस बात का बुरा लग रहा था। इसलिए नहीं कि वो व्यक्ति दिवालियेपन की कगार पे खड़ा था, बुरा तो उन्हें इस बात का लग रहा था कि उसके दिवालिया होने के बाद दूर - दूर तक कोई महंगी शराब मुफ्त पिलानेवाला नहीं दिख रहा था और गर्मी में स्विट्ज़रलैंड अब अपने पैसे से जाना पड़ जाएगा। सरकारी पैसे को हड़पने की युक्ति कई लोगों के पास थी लेकिन उनमें से कोई भी जेल जाने का जोखिम नहीं उठाना चाहता था।
चारो तरफ एक ऐसे व्यक्ति की तलाश शुरू हुई जो सरकारी घोटाले की युक्ति को अंजाम दे सके। एक व्यक्ति मिल भी गया। होनहार और बुद्धिमान, इसके अलावा वो दिखने में सुंदर था और लोगों को ठगने के लिए उसे पलक झपकने की कोशिश भी नहीं करनी पड़ती थी। लेकिन एक कमी थी, बैंक उसे ही लोन देता है, जो पैसे वाला दिखता हो और उसे लोन की जरूरत ना हो। सभी मुफ्तखोरों ने मिलकर इस नए गरीब होनहार को पैसा वाला दिखाने की योजना बनाई। रातो - रात गाड़ी, बंगले और नौकर - चाकर का प्रबंध हो गया। गरीब अपने चारो तरफ की चकाचौंध देखकर पागल हुआ जा रहा था। उसे यह समझ में ही नहीं आ रहा था कि उसके साथ क्या हो रहा है।
बैंक इस नए अमीर को लोन पर लोन दिए जा रहा था। व्यापार करने का लोन, टैक्स भरने का लोन, खाने के लोन से लेकर खुजाने तक का लोन मिल गया। व्यापार भी पेपर पे अच्छा चल रहा था लेकिनआयकर विभाग और GST विभाग को अलग - अलग नंबर की बैलेंसशीट जमा हो रही थी। बैंक अपने पैसे का सदुपयोग देखकर खुश था। और बैंक के सरकारी मालिक उस नए अमीर के साथ पार्टी करने में व्यस्त थे। नेता से लेकर अभिनेता सब इस नए अमीर के साथ फोटों खिंचवा रहे थे। पाप का घड़ा फूटा नया अमीर और उसकी चोरी पकड़ी गई। उसे जेल भेजने का प्लान बन गया, वो दिवालिया हो गया और दूसरी तरफ सभी मुफ्तखोरों को फिर बुरा महसूस होने लगा कि वापस से एक नए गरीब को कहां से ढूंढ कर लाए?
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