पिछले दिनों फ़्रांस के कार्टून आर्टिस्ट (व्यंग्य चित्रकार) चार्ली (शार्ली) की हत्या के बाद मन कुछ विचलित सा हो गया। आतंकवादियों ने चार्ली के कार्यालय में घुसकर कई लोगो की हत्या कर दी और मरने वाले सारे ही कलम से लोगो पर और उनकी बुराइयो पर व्यंग्य करते थे। कई लोग कहते है की धर्म के ऊपर व्यंग्य करना गलत है लेकिन ये वही लोग है जिन्होंने अपने अपने लाभ के हिसाब से धर्म का मतलब निकाला है।भारत में विख्यात चित्रकार सुधीर तेलंग ने कहा की उन्होंने स्वयं पर बहुत पहले ही धर्म कार्टून बनाने के लिए सेंसर लगा लिया था। एक महान दार्शनिक ने लिखा की लोगो को उनके बारे में सत्य हमेशा हास्य और विनोद में बतलाना चाहिए अन्यथा वो आपका कत्ल कर देंगे।
बड़ी परेशानी से रात को सोचते सोचते नींद आयी। मैं कोई बड़ा लेखक तो नहीं हूँ परंतु अभी तक मेरे कुछ व्यंग्य लेखो ने हिंदू धर्म और इस्लाम धर्म दोनों पर प्रहार किया है और उसके बदले में मुझे कई अच्छी गलियो से सम्मानित भी किया गया है। हिंदू धर्म के व्यंग्य लेखो पर तो सिर्फ गलियो का स्वाद मिला परंतु मेरे व्यंग्य लेख जन्नत हॉउस , अल्हा छुट्टियों पर है और हरा रंग पढ़ने पर इस्लाम धर्म के स्वघोषित रक्षकों ने मुझे जान से मारने तक की धमकी दे दी। मेरे लेख हिंदी में होते है शायद इस्लाम के अधिकतर लोगो ने इसे पढ़ा भी नहीं होगा वरना शायद मैं भारत सरकार द्वारा किसी कानूनी अपराध में जेल में होता या फिर अभी तक किसी भले शांतिप्रिय इस्लाम धर्म के रक्षक ने मुझे जान से मार दिया होता।
सोने के बाद मेरे सपने में स्वयं मोहम्मद आये थे। मैंने कहा जनाब आप एक हिंदू के सपने में क्यों आये हो तो मोहम्मद ने कहा की तुम्हारा नाम कमल है तो मुझे लगा की तुम मुसलमान हो और मैं तुम्हे कुछ बताने आया हूं। मैंने कहा हमारे यहाँ हिन्दू धर्म में भी कमल नाम रक्खा जाता है, तो मोहम्मद ने कहा जनता हूँ मेरे मित्र विष्णु को लोग कमल नयन भी बुलाते है। मोहम्मद ने आगे कहा की जिन आतंकवादियों ने मेरे नाम पर बने कार्टून के कारण लोगो को मारा उन्हें बता दो की मुझे उन सभी के कार्टून बहुत पसंद आते थे और उन्हें कत्ल करने के जुर्म में मैं जल्द ही उन सभी आतंकवादियों को जहन्नुम में भेजूंगा और उन कार्टून बनाने वालो को अपने यहाँ जन्नत में रखकर रोज उनसे एक कार्टून बनवाऊंगा।
पिछले दिनों मैंने यूट्यूब पर एक फिल्म देखि "इन्नोसेंस ऑफ़ मोहम्मद" फिल्म देखकर तो मुझे वो एक तरफा काल्पनिक कहानी ही लगी परंतु जिस तरह शांतिप्रिय धर्म इस्लाम के कुछ लोग जिहाद के नाम पर हिंसा कर रहे है उससे मेरा एक मन बार बार उस फिल्म को सही मानने के लिए तैयार हो जाता है परंतु मैं अपने मन को बार बार इस बात पर राजी कर लेता हूँ की वो एक काल्पनिक कहानी है परंतु यदि इसी तरह हर कत्ले आम के बाद यदि आतंकवादी अल्ल्हा हू अकबर बोलते रहे तो जल्द मेरा मन और इस दुनिया में कई लोग "इन्नोसेंस ऑफ़ मोहम्मद" को सच्ची घटना मन लेंगे। भारत में यदि किसी परिवार में कोई लड़का गलत मार्ग पर निकल जाता है तो लोग कहते है की हमारा उससे कोई लेना देना नहीं है परंतु उनके कहने के बाद भी समाज उन्हें सम्मान के नजर से नहीं देखता है।
आतंकवाद का धर्म नहीं होता है ये बात उदार विचारधारा वाले रोज दोहराते रहते है और वही दूसरी तरफ हर आतंकवादी घटना के बाद अल्ल्हा हू अकबर के बुलंद होते नारे इस्लाम के शांतिप्रिय दूतो को खुलेआम बेनकाब कर रहे है। आतंकवाद का धर्म नहीं है परंतु ९५% आतंकवादी घटनाओ में कट्टर इस्लाम के शांतिप्रिय लोग शामिल है और शायद जब गैर इस्लमिक लोगो का गुस्सा लावा बनकर फूटेगा तब बेचारे अच्छे मुसलमान भी इस लावे में जल जायेंगे और शायद उस समय उदारशील विचारधारा वाले भी कुछ नहीं बोल पायेंगे। यही समय है जब इस्लाम में पनप रहे आतंकवाद को सबसे पहले उनके लोगो द्वारा ही कलम कर दिया जाए।
Note : अगले सोमवार फिर मिलेंगे एक नई रचना के साथ। अपनी पुरानी बस्ती में आते रहना। इस रचना पर आपकी प्रतिक्रिया कमेंट बॉक्स में लिखना न भूले।
आपने अपने लेख में 'इस्लाम' और 'मोहम्मद' को यूज़ किया है, आपके सर कलम का फ़तवा जल्द ही जारी होगा ;) - एक ट्वीट ________
ReplyDeleteकाफी बढिया लिखा है।कोई भी परिवर्तन बाहर से शुरू नहीं किया जा सकता।शुरुआत अंदर से ही होती है।
ReplyDeleteधन्यवाद, देखते हैं ऐसा कुछ होता है क्या
Deleteज़बरदस्त लेख लिखा है आपने,, कोई लाख डरा ले आपको पर लिखना जारी रखना,, जो ख़ुद डरे हुए हैं,, वोही लोगों को डराते हें,,
ReplyDeleteधन्यवाद, शायद पहली बार आपको बस्ती का कोई लेख पसंद आया है
Delete👍👍👍👍👍👍
ReplyDeleteइतने प्रश्न चिन्ह का क्या जवाब दू :)
Deleteआतंकवादियों का कोई मजहब नहीं होता.हर धर्म में इस तरह के व्यक्तियों के लिए कोई जगह नहीं.
ReplyDeleteआपकी बात सही है परंतु सभी आतंकवादी घटनाओ में धर्म विशेष का सामिल होना कहा सही है
Deleteबस.. धर्म के नाम पर उनको क़ुरान को तोड़ मरोड़ कर रटाया जाता है. हमला करते वक़्त अल्लाह हू अकबर और हमले की जिम्मेदारी लेते वक़्त पीछे उर्दू में लिखे हुए पोस्टर और उनकी बोलने वाली भाषा सब उर्दू. लेकिन ना जी.. धर्म तो अभी भी Unknown ही है
ReplyDeleteयह सब सोची-समझी साजिशें हैं ,कभी किसी घटना की प्रतिक्रिया में दुनिया भर में मार-काट मचाना और अपनी बार इस प्रकार सफ़ाई देने लगना 1
ReplyDeleteसही कह रही हैं आप
Deleteआतंकवादियों का कोई मजहब नहीं होता
ReplyDeleteआपको ये लेख फिर से पढ़ना चाहिए
Deleteआतंक का कोई मज़हब नहीं है..विचारणीय आलेख
ReplyDeleteधन्यवाद, आते रहिएगा पुरानी बस्ती में और भी आचे लेख पढ़ाएंगे
Deleteआपकी बस्ती में आकर बहुत ही अच्छा लगा , इतना खूबसूरत कलेवर देख कर ही मन आनंदित हो गया मित । अनुसरक बन कर जा रहा हूं ताकि डैशबोर्ड पर ही आपकी पोस्ट प्राप्त हो सके । सामयिक और सटीक लेखन
ReplyDeleteधन्यवाद झा साहब - आशा रहेगी की आप को हमेशा अच्छा पढ़ने को मिले
Deleteआतंक का मजहब नहीं होता ... पर आपके गज़ब का व्यंग लिखा है .... तेज़ धार ...
ReplyDeleteफिर आपको व्यंग्य फिर से पढ़ना चाहिए
Deleteशिकायत रहेगी आपसे...इतना अच्छा लेख और हमे बताया तक नहीं.......
ReplyDeleteशायद उस समय आप पढाई में व्यस्त थे
Deleteयार मै नियमित पाठक हूँ आप के लिए ढेरों शुभकामनाएँ
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteशानदार लिखा है आपने
ReplyDeleteलगता है youtube पर हमे भी ये फिल्म देखनी ही होगी
देखिये
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