पुरानीबस्ती पर लिखे गए सभी व्यंग्य, लेखक की कल्पना है. इसका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति अथवा प्रभु नाम के साथ समानता, मात्र एक संयोग है। हमें क्षमा करें। _/\_ जय श्री राम 

कविता / नज्म

चाँद भी कंबल ओढ़े निकला था,सितारे ठिठुर रहें थे, सर्दी बढ़ रही थी, ठंड से बचने के लिए, मुझे भी कुछ रिश्ते जलाने पड़े।
काव्यका पुरानी बस्ती का एक अहम हिस्सा है, बिना काव्यका के पुरानी बस्ती कुछ सुनसान सी होती।

आपका प्यारा
काव्यका का राहगीर

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