badge पुरानीबस्ती : व्यंग्य
चाँद भी कंबल ओढ़े निकला था,सितारे ठिठुर रहें थे,सर्दी बढ़ रही थी,ठंड से बचने के लिए, मुझे भी कुछ रिश्ते जलाने पड़े।

व्यंग्य


1-एक महान पश्चिमी दर्शनशास्त्री ने लिखा की जो नेता जनता को अपने शब्दों से ठग लेता है तो वो चुनाव में विजय प्राप्त करता है। 2-समय के साथ पंख वाले गिद्धों की संख्या घटने लगी और हाथ - पैर वाले गिद्धों की संख्या बढ़ने लगी। 3-चरित्रहनन करना त्रेता युग से लेकर अब तक समाज की विशेषता रही है। 4-भाषण दिलचस्त मालूम पड़ता था। वजन कम था और चटखारे अधिक, इसलिए तालियॉँ खूब बजती थी।


व्यंग्य की भाषा हमेशा से लोगों को पसंद है परन्तु उन लोगो को नहीं पसंद है जिनके ऊपर व्यंग्य लिखा जाता है। पुरानी बस्ती में अफ़वाहें, आंधी से ज्यादा जोर से चलती है और पेड़-मकान उड़ा ले जाती है। उन अफ़वाहों और व्यंगो को हमने यहाँ सरल भाषा में पिरो के आप के सामने पेश किया है जिनसे सामाजिक और व्यवहारिक ताना बाना बिगड़ सकता है। 

पुरानी बस्ती के सभी व्यंग्य काल्पनिक है और हमारा किसी भी प्रकार से किसी की भावना को आहत करने का उद्देश्य नहीं है। बस्ती के किसी भी पात्र को आप वास्तविक दुनिया से जोड़कर न देखे।

आपका प्यारा
पुरानी बस्ती का राहगीर

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