badge पुरानीबस्ती : #व्यंग्य - मैं नरेन्द्र से नही जलता - एक पत्रकार
चाँद भी कंबल ओढ़े निकला था,सितारे ठिठुर रहें थे,सर्दी बढ़ रही थी,ठंड से बचने के लिए, मुझे भी कुछ रिश्ते जलाने पड़े।

Sunday, October 25, 2015

#व्यंग्य - मैं नरेन्द्र से नही जलता - एक पत्रकार





नरेन्द्र और मैं इस शहर में लगभग लगभग एक ही समय में आए थे। मैं पत्रकार था और नरेन्द्र उन दिनो एक राजनैतिक दल में मीडिया के लोगों के लिए कुर्सी जलपान का इंतजाम करता था। पहली बार नरेन्द्र से मुलाकात एक मीडिया साक्षात्कार के समय हुई। माईक काम नही कर रहा था तो सभापति महोदय ने सबके सामने थोड़ा चिल्लाकर नरेन्द्र से कहा,"अगली बार सब कुछ पहले से चेक कर लेना, हम तुम्हें पार्टी में ऊपर लाना चाहते हैं और तुम एक माईक भी नही सही करा पा रहे हो।"







मेरी पृष्ठभूमि - मैंने एक समृद्ध परिवार में जन्म लिया। पिताजी क्रिकेट खेलते थे इसलिए मुझे भी क्रिकेट का शौक था। मेरी तालीम मुंबई से लेकर विदेश के सभी अच्छे स्कूलों में हुई। अंग्रेजी भाषा पर ज्ञान और पकड़ के चलते मैंने नौकरी का कोई और जरीया ना देख पत्रकारिता को चुना। उन दिनों टीवी भारत में पैर पसार रहा था। व्यक्तिगत समाचार चैनलों में अंग्रेजी चैनल भी आ गए थे। उस समय अंग्रेजी पत्रकारिता और खास करके अंग्रेजी टीवी चैनल की पत्रकारिता जोर पकड़ रही थी। अंग्रेजी पर पकड़ आपको पत्रकार बनने के लिए बहुत थी और मैं इसी तरह पत्रकार बन गया।

नरेन्द्र लोगों को बताता फिरता है वो बहुत गरीब परिवार से आया है। उसकी तालीम गैर अंग्रेजी स्कूल में हुई है लेकिन मैं इन सब बातों को नही मानता हूँ। मेरा मानाना है कि नरेन्द्र बहुत ही धनाढ्य परिवार से है और उसकी तालीम मुंबई के कैंपियन स्कूल में हुई है। वो लोगों से सहानुभूति हासिल करने के लिए स्वयं को गरीब, पिछड़ा हुआ बताता है। उसकी नेतृत्व की कला को देखकर इंदिरा गाँधी के याद आती है और इंदिरा में यह सब कला इसलिए थी क्योंकि वो एक अमीर परिवार से थी, उनके पिताजी नेहरू थे, उनकी पढ़ाई लिखाई अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में हुई थी। तो नरेन्द्र की काबिलीयत देखकर लगता है वो गरीब परिवार से हो ही नही सकता और आजादी के बाद तो सिर्फ अमीरों के घर ही काबिल इंसान पैदा हो सकते थे।

अयोध्या मंदिर के मुद्दे के राजनैतिक ध्रुवीकरण के साथ नरेन्द्र का ओहदा भी उनके दल में बढ़ने लगा। अयोध्या रथ यात्रा की पूरी कमान नरेन्द्र के हाथ में थी। रथयात्रा से राम मंदिर तो नही बना लेकिन कुर्सी लगाने वाला नरेन्द्र अब नेता बन चुका था। एक बार एक प्रेस डिबेट में नरेन्द्र के दल के प्रवक्ता ने अंतिम समय पर आने से मना कर दिया और उनकी जगह चैनल वालों ने नरेन्द्र को बुला लिया। प्रेस के लिए कुर्सी लगाने वाला नरेन्द्र आज मेरे स्टूडियो में बैठकर मुझे ही राजनीति पर ज्ञान दे रहा था और मेरा यकीन और बढ़ गया कि नरेन्द्र अमीर परिवार से है और विदेश के किसी बड़े स्कूल से तालीम हासिल करके आया है और वो लोगों से सहानुभूति हासिल करने के लिए स्वयं को गरीब, पिछड़ा हुआ बताता है।

समय के साथ परिवर्तन होने लाजमी है। सन २००० के बाद टीवी पत्रकारिता में थोड़ी प्रतिस्पर्धा बढ़ने लगी। नए लड़के काफी अच्छी अंग्रेजी बोल लेते थे तो उन्हें जमीन पर रिपोर्ट बनाने का काम दे दिया गया और मैं स्टूडियो में फुल टाइम अपने विचार देने का काम संभालने लगा। सब समाचार से अधिक वजन विचारों को दी जाती थी। नरेन्द्र धीरे - धीरे एक राज्य का मुख्यमंत्री बन गया और मैं आज भी माइक लेकर स्टूडियो में बैठा स्टोरी बना रहा था। और मेरा यकीन और अधिक बढ़ गया कि नरेन्द्र अमीर परिवार से है और विदेश के किसी बड़े स्कूल से तालीम हासिल करके आया है और वो लोगों से सहानुभूति हासिल करने के लिए स्वयं को गरीब, पिछड़ा हुआ बताता है।

२००२ के गुजरात दंगों के समय नरेन्द्र वहाँ का मुख्यमंत्री था। इस बारे में अधिक नही कहना चाहता क्योंकि मामला न्यायालय में विचाराधीन है। २००२ के कुछ सालों बाद मैंने अपना अंग्रेजी न्यूज़ चैनल शुरू किया।

२०१४ के चुनाव में मैंने फिर से स्टूडियो छोड़कर लोगों के बीच जाकर रिपोर्टिंग करना शुरू किया। इस बार नरेन्द्र ने मुझे एक साक्षात्कार देने का वादा किया परंतु २०१४ के नतीजों के आने तक मुझे कोई साक्षात्कार नही मिला। २०१४ के चुनाव जीतने के बाद नरेन्द्र ने मुझे कभी फोन नही किया और उसी के महीने भर में मुझे अपना चैनल छोड़ना पड़ा।

अब नरेन्द्र देश का प्रधानमंत्री है और मैं आज भी वही हूँ जहा था। फिर आप लोग कहते हैं मैं नरेन्द्र से नफरत करता हूँ। क्यों नफरत नही करूँ। एक गरीब पिछड़े घर का लड़का जिसे ढंग से अंग्रेजी बोलने नही आती है, जो किसी अंग्रेजी/विदेशी स्कूल में पढ़ने नही गया उसे क्या हक है मेरे देश का प्रधानमंत्री बनने का। और दूसरी तरफ मैं एक अच्छे परिवार में जन्म लेकर, भारत और विश्व के सबसे अच्छे स्कूलों में पढ़कर निकला हुआ जो अंग्रेजी भी फर्राटेदार बोलता है वो आज स्टूडियो से स्टूडियो ठोकरे खा रहा है और वो कुर्सी लगाने वाला देश का प्रधानमंत्री बन गया।

नरेन्द्र के २०१४ के चुनाव जीतने पर मैंने एक किताब लिखी जिसमे मैंने उन्हें छोड़कर सभी को इस जीत के श्रेय दिया है। लेकिन मैं नरेन्द्र से नही जलता क्योंकि मेरी नजर में वो आज भी कुर्सी लगाने वाला ही है ।




धन्यवाद
@पुरानीबस्ती


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इस व्यंग्य पर अपनी टिप्पणी हमे देना ना भूलें। अगले सोमवार फिर मिलेंगे एक नए व्यंग्य के साथ। 









21 comments:

  1. बहुत ही बेहतरीन व्यंग्य भाई। सच कहूँ तो कभी कभी ऐसा लगता है कि आपका व्यंग्य चार पांच लोग मिलकर लिखते हैं। ऐसे नायाब और दुर्लभ व्यंग्य आज के ज़माने में पढ़ने को मिलना अपने आप बहुत सौभाग्य की बात है। मानो जैसे हर एक शब्द व्यंग्य रुपी चासनी में भिगो भिगो कर लिखा गया हो। आपको शत शत नमन बंधू।

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    1. धन्यवाद शुभांश, जरुरत से अधिक अच्छा लग जाए तो पैसे दे देना भाई बहुत कड़की चल रही है

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  2. kyaa baat hai ji ?? teer bahut nishane par maara hai ?? lekin samajhna thoda mushkil hai , gahrayi hai isme waah ji ! kyaa main aapke is lekh ko apne blog ke paathkon hetu share kar sakta hoon ? thanks far izaajat !!aapka mitr pitamber dutt sharma - mo.no. - 09414657511

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    1. जी जरूर, सिर्फ क्रेडिट देना मत भूलना

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    1. धन्यवाद, लेकिन आप इतने दिन के बाद आये तो कविताओ पर नजर ले जाना

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  4. ये आपने लिखा है ?लगता तो ऐसा है की राजदीप के बुक का हिस्सा है ,और मैंने २ लाइन रविश जब राजदीप के बुक के बारे में बातें कर रहा था तब राजदीप ने खुद ही बोला था की वो एक कुर्सी लगाने वाले से प्रधान मंत्री बन गया मैं अभी भी यही हूँ

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    1. धीरे धीरे और भी कई बातें सामने आएँगी

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  5. बहुत ही बढिया आपके जो पत्रकार महाशय हैं उनकी अमेरिकी यात्रा का विवरण भी होना चाहिये...

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    1. जरूर फिर कभी जिक्र करेंगे

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  6. लाजवाब, और बेहतरीन ब्लॉग।

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    1. धन्यवाद, पुरानीबस्ती में आते रहना

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  7. बहुत ही बढ़िया व्यंग... बहुत लाजबाब है आपका लेखन!

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    1. धन्यवाद, पुरानीबस्ती में आते रहना

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  8. Bhai mandisan wala bhi mention kare dete. Well written

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  9. आप मेडिसन स्क्वायर पर नहीं गए। अच्छा होता अगर व्यंग्य में तमाचे की आवाज़ भी आती। ☺

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