चल उठ खड़ा हो,
उठा शस्त्र,
पापियों का नरसंहार कर,
लहू कलंक का बहा,
असत्य को कर दे सत्य ।
अधर्म सर उठा रहा,
मानव है घबरा रहा,
हिंसा से कतरा रहा,
किसने कहा अहिंसा धर्म हैं,
चल उठ खड़ा हो,
उठा शस्त्र,
पापियों का नरसंहार कर,
लहू कलंक का बहा,
असत्य को कर दे सत्य ।
वो मां का दिल रोता है
बच्चा भूखे पेट सोता है
बहन लाज बचा रही है
धरा त्राहि त्राहि चिल्ला रही,
चल उठ खड़ा हो,
उठा शस्त्र,
पापियों का नरसंहार कर,
लहू कलंक का बहा,
असत्य को कर दे सत्य ।
पंगू जनतंत्र अब दिखता है
कठपुतली सा नाचा कराता है
मानव का सम्मान कहा
मानवता का अपमान यहा
चल उठ खड़ा हो,
उठा शस्त्र,
पापियों का नरसंहार कर,
लहू कलंक का बहा,
असत्य को कर दे सत्य ।
गर्त में तू है जा रहा
सत्य से घबरा रहा
गर्त से निकलने का प्रयास कर
मानवता का उद्धार कर,
चल उठ खड़ा हो,
उठा शस्त्र,
पापियों का नरसंहार कर,
लहू कलंक का बहा,
असत्य को कर दे सत्य ।
मैं ने कब अधर्म का पाठ पढ़ाया,
कब तक अपने मन को
अहिंसाअधर्म है सिखाएगा ,
ए पाप है बढ़ रहा
दिन रात बढ़ता जाएगा
तेरे डर से है ए पल रहा
चल उठ खड़ा हो,
उठा शस्त्र,
पापियों का नरसंहार कर,
लहू कलंक का बहा,
असत्य को कर दे सत्य ।
हिंसा और अधर्म एक नही,
जा गीता का फिर से पाठ कर,
पाप सहना पाप करने से बड़ा,
अंधियारा मिटा,
अन्यथा स्वयं मिट जाएगा,
चल उठ खड़ा हो,
उठा शस्त्र,
पापियों का नरसंहार कर,
लहू कलंक का बहा,
असत्य को कर दे सत्य ।
धन्यवाद
@पुरानीबस्ती
इस कविता पर अपनी टिप्पणी हमे देना ना भूलें। अगले सोमवार/गुरुवार फिर मिलेंगे एक नए व्यंग्य/कविता के साथ।
बहुत बढ़िया, पढ़कर नसों में उबाल आ गया ~ एक टवीट्_______
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद, इस उबाल को बरक़रार रक्खे और देश सेवा में लगाये
Deleteबन्दूक उठाने वाली कविता है ये
ReplyDeleteतो अधर्म के खिलाफ उठा लीजिये बन्दुक
Deleteवीर रस!!!! क्या बात क्या बात क्या बात
ReplyDeleteमज़ा ही आ गया दादा
#बुल्ला
धन्यवाद बुल्ला भाई
Deleteकहीं ना कहीं हम सबके हृदय में ये सब बातें आती हैं जब कहीं अन्याय,असत्य,पाप, हिंसा आदि देखते हैं...काश ये भाव यथार्थ रूप में हर व्यक्ति के हृदय में परिलक्षित हो...!!शुभकामनायें...!!!
ReplyDelete--ज्योत्सना खत्री
धन्यवाद मोहतरमा
Deleteबहुत बढ़िया।
ReplyDeleteधन्यवाद शिव साहब
Deleteबहुत ही सुन्दर कविता- आभार। @Gapagapdotcom
ReplyDeleteधन्यवाद मिश्रा जी
Deleteक्रन्तिकारी कविता
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteउत्तम रचना। आज जब #ISIS जैसे संगठन सर उठा रहें हैं... यह एक अवाहन है:
ReplyDeleteचल उठ खड़ा हो,
उठा शस्त्र,
पापियों का नरसंहार कर!
... उम्मीद है और पढ़ने को मिलेगा!
जरूर साहब और बेहतऱीन लिखने की कोशिश होगी
Deleteहर युग के लिये जीवंत हैं इस कविता के भाव! बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteधन्यवाद गुरूजी
Deleteअति उत्तम रचना । रक्त मे विद्युत का संचार करने वाली ।
ReplyDeleteधन्यवाद राहुल, इस विदुयत संचार को देश के विकास में लगा दो
Deleteअद्भुत सुन्दर रचना! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है!
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteइस कविता को रिकार्ड करना चाहती हूँ, आपका मेल आई डी चाहिए ...
ReplyDeletepuraneebastee (a) gmail.com
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