नाम्या से नामदेव
नाम्या दिनभर आवारागर्दी करता था। उसकी आवारागर्दी के चलते वो पुलिस और नेताओं दोनो के नजर में बना रहता था। बॅाम्बे में हर कोई संघर्ष कर रहा था क्योंकि ये वही समय था जब बॅाम्बे में कुछ बनने का मौका पानी की तरह बह रहा था। उस समय पान की दुकान डालनेवाले भी आज के पढ़े लिखो से अच्छा कमाते थे।
बालकृष्ण भाऊ उस समय लोकल नेताओं के बीच बड़ी तेजी से उभर रहे थे। उन्होंने नाम्या को अपने साथ रख लिया। बालकृष्ण भाऊ जहाँ भी जाते नाम्या उनके साथ होता था। बालकृष्ण भाऊ की एकलौती बेटी ईशा उस हमय कॅालेज में पढ़ रही थी। नाम्या की घर में हर समय मौजूदगी से उनका बात व्यवहार बढ़ने लगा।
बालकृष्ण भाऊ अपने राजनैतिक लक्ष्य को पाने में बहुत व्यस्त हो गए और उन्हें इस बात का एहसास भी नही हुआ कि नाम्या ने ईशा को अपने प्रेमजाल में फांस लिया है और जबतक उन्हें कुछ पता चलता तब तक ईशा गर्भवती हो चुकी थी। बालकृष्ण भाऊ तो ईशा का गर्भपात करवाना चाहते थे परंतु डॅाक्टरो ने इस बात की रजामंदी नही दी।
ना चाहते हुए भी बालकृष्ण भाऊ को ईशा की शादी नाम्या से करवानी पड़ी।
नाम्या होशियार था उसने देखते ही देखते बालकृष्ण भाऊ का नाम अपने कौशल और कपट से ऊपर ला दिया। बालकृष्ण भाऊ भी नाम्या को पहले से अधिक प्यार करने लगे लेकिन कुर्सी का किस्सा हमेशा अपनों में फूट डालता है। ईशा का बेटा नारायण अब बालकृष्ण भाऊ की गोद में खेलता था और नाम्या उनके दिमाग में खेलता था।
मुंबई दंगों में बालकृष्ण भाऊ लोगों को शांत करने में लगे थे। एक दिन बालकृष्ण भाऊ एक मुसलमान बहुल्य इलाके में नाम्या के साथ गए और उस दिन शाम को नाम्या घर खून से लथपथ होकर आया। बालकृष्ण भाऊ इस दुनिया को छोड़कर जा चुके थे और अब उनकी सत्ता नाम्या के हाथ में थी।
नाम्या ने बालकृष्ण भाऊ की मौत के बाद कभी पीछे मुड़कर नही देखा। नगरसेवक से विधायक और फिर महाराष्ट्र सरकार में मंत्री भी बना और साथ में बिल्डर भी बन गया। मुंबई के सभी बड़े नेता रियल स्टेट के व्यापार में बढ़ चढ़कर भाग लेते हैं क्योंकि यहा रुपये का सौ देखते देखते बन जाता है।
नाम्या देखते देखते सफल नेता और एक सबल बिल्डर बन गया।
इस कहानी में कुल १२ भाग है और हर गुरुवार को हम नए भाग के साथ मिलेंगे . आप इस कहानी पे हमें अपनी टिपण्णी जरूर लिखें.
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