बहुत समय पहले कॉलेज में पढ़ा था की राजा के दरबार में उसकी तारीफ करने के लिए कवि और चाटुकार रख्खे जाते थे। चाटुकार का काम क्या था ये आप को आगे मै जिस घटना का जिक्र कर रहा हु उससे पता चल जायेगा। " एक बार राजा ने अपने दरबारियों से कहा की मुझे बैंगन बहुत भाता है। झट से एक चाटुकार ने कहा की हा महाराज बैंगन है ही ऐसा की सबको भा जाये, उसका गठीला बदन देखिए ऐसे लगता है की कोई रोबदार शूरवीर हो, नीला रंग तो जैसे बनाया ही बैंगन के लिए गया है और उसके सर पे ताज कितना भाता है । कुछ दिनों के बाद राजा ने कहा यार ये बैंगन बहुत ही बकसूरत है, चाटुकार महोदय ने फौरन कहा आप एकदम सही बोल रहे है राजा साहब देखिये तो जरा इसने सर पर काँटा लगा रख्खा है, चुभ जाये तो खून निकाल दे और इसका रंग कितना भद्दा है।"
चाटुकार और सलाहकार में काजल और काले रंग जितना अंतर है। दोनों दिखने में एक जैसे है और इनकी बीच में अंतर करना बहुत ही मुश्किल है , परन्तु एक अच्छे नेता की सबसे बड़ी खूबी उसके सही और गलत का निर्णय लेनेपर निर्भर होती है। कभी चाटुकारो पर कोई किताब नहीं लिखी गई, ये एक जन्मजात कला है। सलाहकार बनने के लिए आप कुछ किताबे पढ़कर और लोगो की राय से सीख सकते है। परन्तु चाटुकारिता की कला आपको सिर्फ और सिर्फ जन्म के समय देवो के वरदान से मिल सकती है। आप सोच रहे होंगे की मै इस लेख से आखिर क्या साबित करना चाहता हूँ, तो मेरा जवाब है की मैं सिर्फ आपको आगाह करना चाहता हूँ की आज के इस समय में आप चाटुकार को सलाहकार न समझ बैठे। सलाहकार आप को सच बताएगा और चाटुकार आपको गर्त की तरफ ले जाएगा।
निंदक नियरे राखियो आँगन कुटी छवाय।
बिन पानी साबुन बिना निर्मल करे सुहाय।।
इस दोहे का अर्थ ये है की जो हमेशा आपकी निंदा करता है उसे आपको अपने पास रखना चाहिए। वो हमेशा आपको उसके तीखे शब्दों के साथ सही मार्ग पर चलने का निर्देश देगा। निंदक आप के कार्यशैली को बिना साबुन और पानी के निर्मल बना देगा अर्थात वो हमेशा आपकी प्रगति में मदतगार होगा। परन्तु आज के इस युग में हम हमेशा उल्टा करते है। निंदा करने वाले को दूर भगा देते है और चाटुकारिता करनेवाले को अपने पास बुला लेते है और इसी के कारण हमें अपना हर निर्णय सही लगने लगता है और हम धीरे धीरे दुर्गति की तरफ बढ़ने लगते है। धीरे - धीरे चाटुकारिता की कला प्रचलित हो रही है। अब इसके धीरे धीरे अनकहे नियम लिखे जाने लगे है और चाटुकारो की जमात बढ़ने लगी है और ये जन्मजात कला अब लोगो को अपनी ओर आकर्षित करने लगी है, जो समाज के लिए घातक साबित हो सकती है।
एक मिस्टर चाटुकार की जीवनी संक्षिप्त में इस प्रकार है।
मिस्टर चाटुकार जब कक्षा ५वी में थे उस समय उन्होंने ने स्कूल छोड़ दिया। दिनभर नुक्कड़ पर बैठकर गप्प तड़ाका करना मिस्टर चाटुकार के रोज की दिनचर्या का एक अहम हिस्सा था। धीरे - धीरे मिस्टर चाटुकार अपनी चापलूसी से एक नेताजी के यहाँ काम पर लग गए। मिस्टर चाटुकार को तनखा तो नहीं मिलाती थी परन्तु हलाली मुदाली करके वो हर महीने काफी बढ़िया रकम घर ले जाते थे। आज मिस्टर चाटुकार भारत की एक बहुत बड़ी राजनीतीक पार्टी के बहुत बड़े नेता है। जिस नेता के अंदर उन्होंने अपना राजनीतीक सफर शुरू किया था वो आज भी नुक्कड़ पर है और मिस्टर चाटुकार आज सफलता की ऊँचाई छू रहे है। परन्तु वो जिस पार्टी के नेता है वो पार्टी आज गर्त में खड़ी है और अगर जल्द ही पार्टी ने मिस्टर चाटुकार और मिस्टर सलाहकार में अंतर न किया तो पार्टी का नामो निसान भी मिट सकता है।
चाटुकार आज समाज के हर वर्ग में जड़ जमा चुके है इसलिए सिर्फ राजनीतक दल ही नहीं अपितु हमें भी मिस्टर चाटुकार और मिस्टर सलाहकार में अंतर करना होगा।
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bahut badhiya vyang hai ji ! ye aapka !
ReplyDeleteधन्यवाद :) विचरण करते रहिये कुछ और भी मिलेंगे
Deleteआज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ और आपके 2 लेख़ भी पड़े........
ReplyDeleteलगता है इसे अपनी पड़ने की लिस्ट में शामिल करना पड़ेगा।
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लाजबाब..
अभी भी करेगा पर हैं, अब शामिल कर लीजये और हाँ पुराने व्यंग्यो को पढ़ना मत भूलना
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