कल रात एक नज्म जगा गई थी,
कहती है शायर अब मेरी जानिब नही आते,
वो जो बिछौना पुराना छोड़ गए थे,
अब उसके चिथड़े होने लगे हैं,
तुम्हारी यादों की कतरन से,
एक बेना बनाया है,
ठंड हो तो भी उसे डोलाकर,
सर्द होती है।
याद आती है तुम्हारी,
वो आधी रातों को जगकर,
तुम्हारा मुझसे गुफ्तगू करना,
मुझे गुदगुदा कर जगाये रखना।
एक डेबरी जो तुम जलाते थे,
स्याह रातों में,
बिना जले उसकी बाती,
अब घटने लगी है।
चले आओ शायर,
के अब कुछ दिन की जिंदगानी हैं,
एक बार देख लू तुम्हें,
तो अपने मर्कज की तरफ बढ़ू।
तुम्हारी यादों की कतरन से,
ReplyDeleteएक बेना बनाया है,
ठंड हो तो भी उसे डोलाकर,
सर्द होती है।
बहुत अच्छी लगी यह पंक्तियाँ।
धन्यवाद
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