badge पुरानीबस्ती : #कविता - पत्तों का खाक होना
चाँद भी कंबल ओढ़े निकला था,सितारे ठिठुर रहें थे,सर्दी बढ़ रही थी,ठंड से बचने के लिए, मुझे भी कुछ रिश्ते जलाने पड़े।

Monday, August 29, 2016

#कविता - पत्तों का खाक होना


आज शाख से टूटते पत्ते 
कुछ गुनगुना रहें थे,
अभी जमीन पर गिरे नही 
लेकिन कब्रगाह का जिक्र था,

शाखाओं ने भी शोर मचाया,
कहा,



कब्र नही चिता बनेगी,
शाखाओं ने भी सीख लिया,
कब्र और चिता का फरक,

मजहबी रंग इंसानियत से बढ़कर,
अब आगे बढ़ निकले हैं,
शाखाओं और पत्तों ने भी,
अब अपना मजहब चुन लिया है।

कुछ पत्ते अधर्मी हैं,
कहते हैं,
ना चिता बनेंगे,
ना दफ्न होंगे कब्र में,
हम इस फिज़ा की औलादें हैं,
इस फिज़ा में कही खाक हो जायेंगे।










7 comments:

  1. बहुत सुन्दर......

    ReplyDelete
  2. कहीं गहरे उतरते शब्‍द ... नि:शब्‍द ही करते हैं !

    ReplyDelete
  3. मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए है। बढ़िया रचना है।बधाई।

    ReplyDelete

Tricks and Tips