badge पुरानीबस्ती : कल रात ख़्वाबों में
चाँद भी कंबल ओढ़े निकला था,सितारे ठिठुर रहें थे,सर्दी बढ़ रही थी,ठंड से बचने के लिए, मुझे भी कुछ रिश्ते जलाने पड़े।

Friday, April 21, 2017

कल रात ख़्वाबों में








कल रात ख़्वाबों में


ग़ालिब से मुलकात हो गई,


बातें वही पुरानी,


बल्ली मारा के मोहल्लों की,


अगरचे बदले नहीं ग़ालिब,


बस अब थोड़ा झुककर चलते हैं।





उनके साथ चलकर 


पुरानी दिल्ली तक पहुँचा,


खड़े मिले वहीं प्रेमचंद,


ज़िक्र करते


लखनऊ की गलियों के,


कहानी उन्होंने खूब सुनाई,


बुधिया और घीसू की। 





अचानक से नज़्म कानों में पड़ी,


मुंबई की गलियों में था मैं,


खड़े गुलज़ार बयां कर रहें थे,


आबशारों के अहसास करिने से,


सुनाते गिलोरी की ज़ुबान में,


किस्से दीना के। 





कल रात ख्वाबों में,


ग़ालिब से मुलकात हो गई,


कल रात ख्वाबों में,


प्रेमचंद से बात हो गई,



कल रात ख्वाबों में,


गुलज़ार से किस्सागोई हुई। 





कल रात ख़्वाबों में ..... 











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