चलो फिर एक नया मजहब बनाए,
कुछ और लोगों को बांटे आपस में,
बढ़ाएं रंजिशें उनकी,
उकसाएं लोगों को कत्लेआम के लिए,
कुछ मरेंगे,
कुछ लहूलुहान होंगे,
चिंगारी जलती रहेगी,
पीढ़ी दर पीढ़ी,
एक दूसरे को नीचा दिखाने की।
कुछ और खुदगर्ज कूद पड़ेंगे,
इस रंजिश के खेल में,
सेकेंगे रोटियां,
मय्यत की चिंगारी पर,
आग बुझ गई तो,
मजार के
दीये
से फिर जला देंगे,
जलाकर घर हमारा,
अपना महल रोशन करेंगे।
बीत जाएँगी कई पीढ़िया,
भूल जाएँगी कारण आपसी लड़ाई का,
धर्म गुरु फिर उठेंगे,
सीख देंगे धर्म रक्षा का,
कहेंगे लड़ मरो,
अपने धर्म के लिए,
लेकिन
कभी स्वयं धर्म की रक्षा के लिए लड़ने ना आएंगे।
चलो फिर एक नया मजहब बनाए,
कुछ और लोगों को बांटे आपस में।
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हर सोमवार/गुरुवार हम आपसे एक नया व्यंग्य/कविता लेकर मिलेंगे।
बहुत बखूबी से आज के दुनिया को दिखाया गया है...
ReplyDeleteकुछ ऐसी ही यह भी है..
अजीब सी धुन बजा रखी है
जिंदगी ने मेरे कानों में,
कहाँ मिलता है चैन
पत्थर के इन मकानों में,
बहुत कोशिश करते हैं
जो खुद का वजूद बनाने की.......
...
www.apratimblog.com
bahut sundar...
ReplyDeleteधन्यवाद
DeleteWoohooo .. Hard hitting man ..
ReplyDeleteउकसाएं लोगों को कत्लेआम के लिए,
ReplyDeleteकुछ मरेंगे,
कुछ लहूलुहान होंगे,
मर्मस्पर्शी ....बहुत गहरी पंक्तियाँ :)
धन्यवाद
Deleteबहुत भावपूर्ण और बेहतरीन रचना.....बहुत बहुत बधाई.....
ReplyDeleteधन्यवाद
Delete"बीत जाएँगी कई पीढ़िया,
ReplyDeleteभूल जाएँगी कारण आपसी लड़ाई का"
काफ़ी सटीक! जियो !
धन्यवाद
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