उजाले तो हर कोई
अजुरी भरखकर रख लेता है,
आओ मेरे साथ
कुछ पल अंधेरों का देते हैं।
काली स्याही फेंककर
कुछ उजली रातों को चमकाया है,
सितारों से कहा
तुम कुछ देर के लिये टिमटिमाना बंद करो,
चाँद की छुट्टी तो पहले ही कर दी थी,
अभी देर है सूरज को निकलकर
प्रकाश का कोलाहल करने में,
आओ मेरे साथ
कुछ पल अंधेरों का देते हैं,
गिनकर तारे सर्द रातों में,
उँगलियाँ जो जल गई थी,
आज उन्हें मरहम
अंधेरे का लगा देते हैं।
कुछ खयालात हैं,
कुछ खयालात हैं,
जो अंधेरे के सर्द होने पर,
आकर बैठते हैं मेरे पास,
मुझसे गुफ्तगू करतें हैं।
आओ मेरे साथ
कुछ पल अंधेरों का देते हैं,
वाह !
ReplyDeleteधन्यवाद
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